Monday 7 April 2014

वाइब्रेंट गुजरात का असली चेहरा!

 
हिंसक मोदी का गुजरात हो सकता है, परंतु सामान्य गुजरात नहीं। इस तथ्य से सभी अवगत हैं कि गुजरात प्रदेश प्राचीन समय से ही समृद्ध रहा है। गुजरात राज्य की ओर ध्यान जाना जरूरी है। इस राज्य में 44.6 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। हालांकि शिशु मृत्यु दर में कमी जरूर आई है लेकिन इस दर में गिरावट राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी कम है। करीब 65 फीसदी ग्रामीण परिवारों और 40 फीसदी शहरी परिवारों के पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है और उन्हें मजबूरी में खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। राज्य में पुरुष महिला अनुपात कम है यानी 1000 पुरुषों पर 918 स्त्रियों का औसत है। यह भी राष्ट्रीय औसत से कम है।
 
गरीबी की बात करें तो शहरी मुसलमान ऊंची जाति के हिंदुओं की तुलना में करीब 8 गुना ज्यादा गरीब हैं। सच कहा जाए तो इस राज्य को भी बिहार और मध्य प्रदेश जैसे अल्प विकसित राज्यों की कतार में शुमार किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। असल में गुजरात की गिनती भी महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे विकसित राज्यों के साथ की जाती है जबकि मानव विकास के मामले में यह राज्य इन राज्यों की तुलना में काफी पीछे है। अभी तक आप गुजरात को उच्च विकास दर वाला राज्य मानते होंगे लेकिन शायद आप इन निराशाजनक आंकड़ों से अनजान होंगे। यकीन मानिए इन जनजातियों के साफ सुथरे घरों और उनकी खूबसूरती को देखकर आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे। लेकिन इस ग्रामीण रमणीय जगह के पीछे भी एक सच्चाई छिपी है। हार्डीकर कहती हैं कि इन गांवों में पिछले दो महीनों के दौरान गर्भावस्था से जुड़ी करीब 10 मौतें हुई हैं। गांव वालों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। वह पूछती हैं, 'ऐसा विकास मॉडल किस काम का जो हमें सुविधाएं दे पाने में नाकाम है।'
 
ऐसा नहीं है कि सरकार के पास स्वास्थ्य कार्यक्रमों की कमी है। असल में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत शुरू की गई चिरंजीवी योजना ने कई ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने में मदद की है जिन्होंने लंबे समय से गुजरात के लोगों को परेशान कर रखा था। गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च की प्रोफेसर एवं पूर्व निदेशक लीला विसारिया कहती हैं, 'इस योजना के साथ सिर्फ एक समस्या है। सरकार का ध्यान शहरों की ओर अधिक है। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों पर ध्यान नहीं है।' इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपट पाना आसान नहीं है। लोगों को नई तरह के चिकित्सकीय समाधानों की जरूरत है। इन जगहों पर काफी लोग एनीमिया से पीडि़त हैं और अक्सर गर्भवती महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी पाई जाती है। जबरदस्त उपेक्षा का सामना कर रहे इस क्षेत्र में 96 गांवों को सेवाएं देने वाले राज्य द्वारा संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले सात साल से किसी बाल रोग विशेषज्ञ और स्त्री प्रसूति विशेषज्ञ चिकित्सक की तैनाती नहीं हुई है। 
 
शिक्षा क्षेत्र में भी हालत इतनी ही खराब है। एक अन्य गैर सरकारी संगठन प्रथम के मुताबिक ग्रामीण गुजरात में करीब 95 फीसदी बच्चे विद्यालयों में पंजीकृत हैं लेकिन ज्ञान का स्तर काफी कम है। पांचवीं कक्षा में पढऩे वाले करीब 55 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम  नहीं पढ़ पाते हैं। लगभग 65 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो गणित के सामान्य जोड़ घटाव भी नहीं कर पाते हैं। बहुत सारे लोगों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक शराब पीकर आते हैं और ताश खेलते हैं। बारिया में बच्चों के लिए साल में 24 दिन का शिविर चलाने वाली हार्डीकर कहती हैं कि पांचवीं कक्षा के बच्चे अक्षर भी नहीं पहचान पाते हैं। उच्च शिक्षा की स्थिति के बारे में अर्थशास्त्री वाई के अलघ कहते हैं कि इसकी हालत भी खस्ता है। क्या यह गुजरात का विकास मॉडल है या गुजरात का विनाश मॉडल ?

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