भ्रष्टाचार के
खिलाफ संघर्ष के युग-पुरूष होने का दावा करने वाले नरेन्द्र मोदी की हक़ीक़त बेहद
ही हैरान करने वाली है। गुजरात में लोकायुक्त के गठन को रोकने की खातिर एड़ी-चोटी
लगा देने वाले मोदी ने एक बार फिर से भ्रष्टाचर के मुद्दे पर अपनी आंख मूंद लेने
वाली दकियानूस मानसिकता का परिचय दिया है। मोदी के गुजरात
में रोडवेज़ महकमे में मचे भारी-भरकम गड़बड़-झाले और भ्रष्टाचार की मांग को लेकर
एक शख्स गुज़िश्ता दो सालों से गुजरात के मुख्यमंत्री से मिलने की बाट जोह रहा है।
मगर चुनाव के दौरान देश में जगह-जगह 56 इंच की कथित
छाती लेकर भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने का गुब्बारा फूलाने वाले मोदी के पास उससे
मिलने का वक़्त नहीं है। 6 करोड़ गुजरातियों के नाम की दुहाई देने वाले
मोदी से मिलने को तरस रहा यह शख्स गुजराती ही है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना
देकर बैठे इस शख्स के पास मोदी के गुजरात में एक सरकारी महकमें में मची लूट के
तमाम दस्तावेज़ हैं, मगर अपनी जी-तोड़ कोशिश के बावजूद वो मोदी से
मिल सकने में कामयाब नहीं हो सका है।
क्या भ्रष्टाचार
के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद करना पागलपन है? उत्तर प्रदेश की
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को आईपीएस अफ़सर डीडी मिश्र ने भ्रष्ट कहा तो उन्हें
पागल क़रार देकर मानसिक अस्पताल में डाल दिया गया। भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ते हुए सात गोलियां खाने वाले पीसीएस अफ़सर रिंकू
सिंह राही इसी साल जब लखनऊ में भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे तो सरकार ने
उन्हें भी पागल बताते हुए मानसिक अस्पताल में डलवा दिया। और अब गुजरात रोडवेज का एक ड्राइवर विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की सीबीआई
जांच के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठा है तो उसे भी पागल क़रार देकर
नौकरी से निकाल दिया गया है।
यूं तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का दावा है कि वो राज्य के किसी भी
नागरिक से मात्र एक फोन कॉल दूर हैं और कोई भी नागरिक उनसे मिल सकता है। लेकिन
मोदी के यह वादे शायद बंसीलाल महाजन के लिए नहीं है। बंसीलाल जब भी मोदी के दफ्तर
फोन करते हैं उनकी आवाज़ सुनते ही फोन काट दिया जाता है। जंतर-मंतर पर डटे बंसीलाल
को विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने शुरु में प्रलोभन दिया। उन्हें प्रोमोशन और मोटी
रक़म का लालच भी दिया गया,
लेकिन जब वो
किसी मूल्य में नहीं बिके तो उन्हें मानसिक रूप से बीमार क़रार देकर नौकरी से
निकाल दिया गया।
सबसे पहला सवाल
यही है कि जब भी विभाग के अंदर का कोई कर्मचारी भ्रष्टाचार और शोषण के खिलाफ़
आवाज़ उठाता है तब उसे पागल क़रार देकर नौकरी से क्यों निकाल दिया जाता है? बंसीलाल के साथ जो हो रहा है वो दुखद है लेकिन उससे भी ज्यादा दुखद है आम जनता
की खामोशी… लोग बस में बैठकर सफ़र तो आराम से करते हैं, लेकिन उन्हें बस की सेहत की फिक्र नहीं है और अब जब रोडवेज का ही एक कर्मचारी
बस की सेहत सुधारने की कोशिश कर रहा है तब वो उसके साथ नहीं हैं।
हक़ीक़त बेहद ही
तल्ख है, बहुत ही कड़वी है, क्योंकि मोदी को अपनी आंखों के सामने केवल प्रधानमंत्री की कुर्सी दिख रही है, उन्हें साबिर अली, जगदम्बिका पाल और राम विलास पासवान जैसे
दाग़ी व दलबदलू नेताओं से मिलने की फुर्सत है, लेकिन ईमान व
सच्चाई के लिए लड़ रहे अपने ही राज्य के एक गुजराती के लिए मोदी की महत्वकांक्षाओं
में रत्ती भर भी जगह नहीं है। और इन सबके बीच बंसीलाल की यह कहानी मोदी के गुजरात
में फैले भ्रष्टाचार का सच दिखाने के लिए काफी है। उम्मीद की हर चौखट से निराश
बंसीलाल अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते-लड़ते वास्तव में पागल हो गए तो जिम्मेदार
कौन होगा? राष्ट्रपति कार्यालय, मोदी सरकार या फिर हम लोगों की खामोशी?
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