Saturday 12 April 2014

नटवर की अंधेर लीला



नटवर की अंधेर लीला

नरेंद्र मोदी ने ही कभी कहा था कि आप मेरे लिए एक दिन जागिए, पांच वर्ष में आपके लिए जागूँगा। जनता को सुलाकर वह आत्मप्रचार के लिए निरंतर जागते रहे। सामान्य गुजरात अत्यंत गहन और विस्तृत है। उसका शीर्ष ही नहीं, जड़ भी भारत क्या, इंग्लैंड-अमेरिका तक फैली है। इस छिछले प्रसरते युग में उनका छिछला और प्रसरता गुजरात ही बाहरों को दिखता है, गहन-विस्तृत गुजरात नहीं। मोदी ने अपने गुजरात को फैलाकर विज्ञापित किया है। इस तरह सामान्य गुजरात को मोदी ने अपने गुजरात से ढंक दिया है। मोदी की जुबान पर भूले से भी गुजरात का कोई विरोधी नहीं आता। ऊंचे बैठे हुए को बाहर ही दिखता है, भीतर नजर डालने के लिए नजर को नीची करनी पड़ती है। नजर नीची करना मोदी को गवारा नहीं। इसीलिए हमेशा बाहरी नेता का नाम लेते हैं, जिसे मीडिया उनको केंद्र की सत्ता का दावेदार बना देती है। जबकि असलियत यह है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात की गहनता और विस्तार को बढ़ाया नहीं, बल्कि निरंतर संकुचित किया है।

उसी निश्चिंत सोयी जनता को उन्हें चुनाव के समय में जगाने की जरूरत पड़ती है। सो बीती विभावरी जाग रीगाकर जगाते हैं। आंख मलती जनता जब चारों ओर नजर घुमाती है, तो मोदी के विकास से चुंधिया जाती है, क्योंकि सोने के पहले का दृश्य इतना बदल चुका होता है कि साफ तौर पर कुछ नजर ही नहीं आता। ऐसा तो सिर्फ नटवर कर सकता है। सो नरेंद्र मोदी नटवर हो जाते हैं। जिधर देखो उधर विभिन्न चमकीली मुद्राओं में नटवर ही नटवर। वैसे भी यहां के लोग प्राचीन काल से ही नटवर पर रीझते आए हैं। चुनावी दिनों में नटवर कमल हो जाता है। जिस्म से कोमल कमल की कर्कश हुंकार जनता को विस्मित करती है। सो उसी पर ठप्पा लगा कर उसे ठप्प कर देती है।

उसका मतलब कि अत्यंत थुलथुल मोदी द्वारा किया गया गुजरात का विकास है। भीतर से खाली, पोलम-पोल। अब यह न पूछिये कि ये अव्वल नंबर देने वाली एजेंसियां कौनसी हैं। जब साहित्य जैसे टुटपुंजिया क्षेत्र में रेटिंग करने वाली एजेंसियों की भरमार है, तो राजनीति जैसे धन संपन्न क्षेत्र में कैसे न होंगी। विज्ञापन का दौर है भाई। फेसबुक-ट्वीटर एक व्यापारी द्वारा किया जा रहा व्यापार है, जिसे आम आदमी ने अपनी बात कहने का सबसे आसान और सशक्त माध्यम समझ लिया है। इसीलिए वो निरंतर अपना स्थूल चेहरा बदल-बदल कर पेश कर रहे हैं। इसके बरक्स राजनीति तो हमेशा से ऐसा करती आयी है। वह तो आत्मप्रचार के द्वारा ही अपना चेहरा बनाती है। वह राजनेता कैसा जो चेहरा बनाने के लिए आत्मप्रचार न करे। वह जिस गुजरात का पर्याय बनने की कोशिश में लगे थे, जिसमें मीडिया ने खूब योग दिया था; वह सामान्य गुजरात न होकर मोदी का गुजरात था।

गुजरात के लोगों की यह तस्वीर मोदी जी के कथनों की निर्मिति है, वास्तविक नहीं। अगर वास्तविक होती तो कुछ सीटें कांग्रेस-एनसीपी को कैसे मिल जातीं! ऐसा है कि सामान्य लोगों को कभी निश्चिंत नींद आती ही नहीं। हमेशा चिंतित जो रहते हैं, सो बीच-बीच में आंख खुल ही जाती है, तो दिख पड़ती है नटवर की अंधेर लीला, जिसे मोदी जी बाहरियों का अपप्रचार बतलाते हैं। इस तरह सामान्य गुजरात और अन्य प्रदेश मोदी के लिए बाहरी हैं। भीतरी हैं तो केवल नरेंद्र मोदी और उनके पीछे चलनेवाले लोग। क्या आप जानते है गुजरात विकास की भीतर की असलियत?

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