Thursday 24 April 2014

इन सवालों पर मोदी ने चुप्पी क्यों साधी?

इन सवालों पर मोदी ने चुप्पी क्यों साधी?
नरेंद्र मोदी रोज़ बोलते हैं और सबसे तेज़ बोलते हैं जैसे भीड़ को जगाने वाली आवाज़ हो। लेकिन फिर भी उनकी बात सुनाई नहीं देती- कम से कम उन लोगों को, जिनके पास उनके लिए सवाल हैं। मीडिया उनसे सवाल पूछ रहा है। अरविंद केजरीवाल ने भी उनसे कुछ सवाल पूछे हैं। 2002 के गुजरात दंगों के परिवारों के प्रभावित भी उनसे सवाल पूछ रहे हैं। उनके आलोचकों ने उनसे गहरे सवाल पूछे हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि इन सवालों के लेकर उन्होंने ख़ामोशी की दीवार बना ली है। जिस आदमी को भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसके लिए यह अच्छा शगुन नहीं है। सबसे अधिक वांछित पद हासिल करने की दहलीज़ पर खड़े होकर अवर्णनीय चुप्पी ओढ़ लेने का मतलब उन लोगों को और मौक़ा देना है जो उनकी ताक में हैं।
जान बूझकर उपेक्षा
नरेंद्र मोदी की ख़ामोशी का एक स्वरूप है। वह सुशासन पर बोलते हैं। वह सरकार के 'गुजरात मॉडल' पर बोलते हैं। वह ख़ुद 'शहज़ादे' से बहुत से सवाल पूछते हैं। यह काम वह हर रैली में करते हैं, रोज़ करते हैं और दिन में कई बार करते हैं। संभवतः बार-बार दोहराए गए उनके भाषण वापस उछलकर उनकी ओर ही लौट आते हैं और स्वाभाविक रूप से वह उन सवालों को नहीं झेल पाते जो उनकी ओर उछाले गए होते हैं। लेकिन मोदी के आलोचक कहते हैं कि वह उन सवालों को टाल देते हैं जो उनके लिए मुश्किल हो सकते हैं। उनका कहना है कि वह उन्हें ठीक-ठीक सुनते हैं लेकिन ऐसा जताते हैं कि उन्होंने ईयर प्लग पहने हुए हैं। 'जासूसी कांड' और 'गुजरात दंगों' पर उनकी स्थाई ख़ामोशी को रणनीतिक ताक़त के बजाय कमज़ोरी के चिन्ह के रूप में देखा जा रहा है।  कुछ सवालों ऐसे हैं जिनके जवाब लोग मोदी से चाहते हैं।
गुजरात दंगे
साल 2002 के हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान वह राज्य के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री दोनों थे। मुस्लिम समुदाय के मन में यह पक्की भावना है कि जब हिंदू दंगाई उन्हें निशाना बना रहे थे तो नरेंद्र मोदी ने आंखें फेर ली थीं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी को दंगों के दौरान उनके कर्तव्य में कोताही बरतने का कोई सुबूत नहीं मिला। इसे लेकर उनकी प्रतिक्रिया ख़ामोशी बरतने से लेकर झुंझलाकर इंटरव्यू ख़त्म कर देने तक जाती है। अदालत के आदेश के बावजूद भी यह सवाल उनका पीछा नहीं छोड़ता।
गैस की क़ीमत
दो महीने पहले नरेंद्र मोदी को 'फ़ेसबुक टॉक्स लाइव' नाम के एक कार्यक्रम में शामिल होना था। इसमें अरविंद केजरीवाल, लालू यादव और कई अन्य नेता पहले ही शामिल हो चुके हैं। अंतिम समय में इसे आश्चर्यजनक ढंग से वापस ले लिया गया जबकि मोदी कैंप के लोग इसे लेकर उत्सुक थे। लेकिन उन्हें पता चला कि फ़ेसबुक यूज़र्स उनसे कई परेशान करने वाले सवाल पूछ सकते हैं जिनमें गैस क़ीमतों का विवादित मुद्दा भी शामिल है। गैस क़ीमतों की वृद्धि से मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को भारी फ़ायदा होगा। उनका और उनके समर्थकों का मानना है कि क्योंकि अंबानी मोदी के क़रीबी हैं इसलिए वह अंबानी के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं कह सकते।
चुनाव ख़र्च
जबसे मोदी को बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया गया है तबसे वह देश भर में उड़ान भर रहे हैं। और हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल करते हैं। उन्हों ने इस भरी खर्च पे भी कोई जवाब नहीं दिया है।
जासूसी कांड
पिछले साल नवंबर में दो न्यूज़ वेबसाइटों ने आरोप लगाया था कि मोदी के सबसे विश्वसनीय सहयोगी अमित शाह ने सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर 2009 में अपने 'साहब' के कहने पर एक युवती की अनधिकृत निगरानी का आदेश दिया था। बीजेपी ने माना है कि निगरानी की गई थी लेकिन कहा है कि यह युवती के पिता के कहने पर की गई थी। हालांकि वह युवती इससे पूरी तरह अनभिज्ञ थी। मोदी से इस बारे में सफ़ाई मांगी गई है लेकिन न तो उन्होंने इस बारे में एक भी शब्द कहा है और न ही यह बताया है कि इस ग़ैरक़ानूनी निगरानी का आदेश क्यों दिया गया था।
वैवाहिक स्थिति
कुछ हफ़्ते पहले अपना नामांकन भरते वक़्त जब मोदी ने चुपचाप यह ज़ाहिर किया कि वह शादीशुदा हैं तो काफ़ी सनसनी फैल गई थी। इससे पहले हर बार नामांकन भरते वक़्त उन्होंने वैवाहिक स्थिति वाला खाना खाली छोड़ दिया था और इस बात की ओर सबका ध्यान गया। क्या वह सचमुच में शादीशुदा हैं? क्या वह अपनी पत्नी से विरक्त हैं?

 डॉक्टर माया कोडनानी
माया कोडनानी को 2002 के दंगों में उनकी भूमिका के लिए 28 साल जेल की सज़ा दी गई है। उस वक़्त वह मोदी सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्री थीं। 2009 में गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था। उन पर दंगों में शामिल होने का आरोप लगने के बावजूद मोदी ने उन्हें अपनी सरकार में शामिल किया था. इस बारे में उनसे लगातार सवाल पूछे गए अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।
मोदी इस मुद्दे पर अभी तक ख़ामोश हैं। इसके अलावा भी और बहुत से सवाल हैं जो लोग मोदी से पूछते हैं और वह जवाब नहीं देते। कई बार ख़ामोशी बेशक़ीमती होती है। लेकिन कई बार ख़ामोशी को अपराध की स्वीकारोक्ति के रूप में भी लिया जा सकता है। क्या आपको ऐसी व्यक्ति के हाथ में देश सौपना हैं?

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