दुनिया के एक सबसे बड़े
लोकतांत्रिक राष्ट्र के प्रधानमंत्री होना, बनना या चुने जाना अपने आप में एक बड़ी
घटना है| यह वो घटना है जिसके ऊपर अपनी नजर टिकाये पूरा विश्व बैठा है| यह वो घटना
है जिसके हाथ में कई लोगों के भाग्य का फैसला करने का अधिकार आनेवाला है| ऐसे ही
कारणों से 2014 के चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण हैं| लेकिन मैं यहाँ आपको बताउंगा
गुजरात की हकीकत, जो की बहुत कडवी है!
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करो कम, दिखाओ ज्यादा |
करो कम, दिखाओ ज्यादा:
गुजरात की भाजपा सरकार ने
शुरू से ही दिखावे करना शुरू कर दिया था| इसके बा-वजूद कि
मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने करोड़ों रूपये खर्च करके कृषि महोत्सव किये,
धूम-धडाके किये, कृषि-रथ चलाये, किसानों को लुभाया, गुजरात में कृषि विकास के
आंकड़े कम हुए| उत्तर प्रदेश 20.38 प्रतिशत, बिहार 20.51, राजस्थान 18.51 और गुजरात
1.30 प्रतिशत कृषि विकासदर देखने को मिला! सवाल यह है कि यु.पी.,
बिहार, राजस्थान वगैरह राज्य कुछ प्रचार नहीं करते, कुछ दिखावा नहीं करते फिर भी
उनके आंकड़े बड़े हैं, और गुजरात के मुख्यमंत्री श्री मोदी जनता के इतने रुपयों का
खर्च करके भी उस आंकड़ों को नहीं पा सकते, तो गुजरात सरकार को यह खर्चा करने का
क्या अधिकार है? गुजरात में पिछले साल अनाज
21 प्रतिशत कम हुआ, तेलिबिया 43 प्रतिशत कम हो गया| मूंगफली सबसे ज्यादा 72
प्रतिशत कम हुई|
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बूरा करो पर सुनो नहीं |
बूरा करो पर सुनो नहीं:
गुजरात की मोदी सरकार ने
अगर कहीं भ्रष्टाचार किया और किसीने उसके खिलाफ फ़रियाद की या आरटीआई की तो उसकी
जान जोखिम में पड जाती, ऐसा भी आरोप है| बूरा करना है, सुनना नहीं है! कोई आरटीआई
करे तो उसको तारे दिखा दो! प्रचार ऐसा करो कि अपनी सरकार ट्रांसपेरेंट है|
वोट मिलते हों तो ‘बापू’
के काले धंधे चलने दो:
फर्जी कागजात के आधार पे
आसाराम को किसान दिखाने का घोटाला पिछली साल बाहर आया| आसाराम तो आध्यात्मिक पुरुष
हैं और वे कैसे किसान हो सकते हैं? लेकिन, मोदी सरकार ने उनको भी किसान बना दिया|
मोदी के ‘पारदर्शक’ प्रशासन के अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से आसाराम ये
फर्जी कागजात बना पाए और बेझिज़क बन बैठे किसान! यह तो अच्छा है कि गुजरात में मीडिया
सक्रिय है, वरना आसाराम ने एक बीघा जमीन भी कृषि के लिए छोड़ी न होती! मोदी के
‘पारदर्शक’ प्रशासन ने ही आसाराम को ‘अबडासा’ गाँव का गरीब किसान बताया! क्या बात
है!
“क्या जरूरत लोकायुक्त की?
मैं हूँ नाँ!”:
“गुजरात में किसी
लोकायुक्त की जरूरत नहीं है, क्यूंकि मैं खुद ही लोकायुक्त हूँ”-जी हाँ, ऐसा ही
कहने की इच्छा रही होगी मोदी ‘साहेब’ की, पर वे कह नहीं पाए होंगे! मुख्या
न्यायमूर्ति ने कहा कि मोदी ने कोई नाम सजेस्ट किये नहीं हैं इसलिए मंजूरी देने का
सवाल ही नहीं है|
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बिजली खरीदो मेहंगी, बेचो सस्ती |
कोई भी उद्योगपति हो, वह
गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी की प्रशंसा ही करेगा| क्यूँ? क्यूँकी गुजरात में मोदी
ने उद्योगपतियों को खुला मैदान दे दिया है| जाओ, जहाँ जी चाहे वहां कुछ भी करो,
जाओ, जो भी जमीन पसंद आये वो ले लो – एक एकर का भाव 50 पैसा है! जाओ, ऐश करो| गुजरात राज्य के
मुख्यमंत्री श्री मोदी ने बड़ा जोरदार खेल शुरू किया है| पहले वे अदानी को कम दाम
में किसानों की जमीनें बेच देते हैं, फिर अदानी से महंगे दाम में बिजली खरीदते
हैं! सेन्ट्रल पूल की सस्ती बिजली गुजरात सरकार खरीद नहीं करती| वैसे तो मुख्यमंत्री के
खिलाफ कोई बोलेगा ही नहीं, लेकिन अगर कोई बोला तो एक ही बार बोलेगा| दूसरी बार
शायद बोलने लायक नहीं रहेगा! गुजरात में जब तक मोदी
‘साहेब’ हैं तब तक अदानी और अम्बानी को मजे ही मजे है! अम्बानी और अदानी मोदी के
कोई सगे-सम्बन्धी नहीं हैं, वे तो व्यापारी हैं, और अपने धंधे कर रहे हैं|
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‘गरीब कल्याण मेले’ |
गरीब नहीं हैं, ‘गरीब
कल्याण मेला’ जारी रखो:
एक तरफ गुजरात सरकार दावे
करती है कि गुजरात में गरीब कोई है ही नहीं, और दूसरी तरफ ‘गरीब कल्याण मेले’
आयोजित करती है! 119 गरीब-कल्याण मेलों के लिए 10 करोड़ रुपयों का खर्च करने का
आयोजन केवल मोदी सरकार ही कर सकती है, जिसे पता नहीं कि इसी तरह के निरंकुश खर्च
करने से दिन ब दिन गुजरात भारी कर्जे की खाई में ऊतरता जा रहा है और राज्य के हर
रहीश के सर पे कर्जा बढ़ता जा रहा है! जहाँ भी ऐसे मेले लगते हैं वहां मोदी अपने
राज्य के सार्वजनिक परिवहन की सभी बसें ‘डायवर्ट’ कर देते हैं ताकि ‘गरीब’ लोग
वहाँ पहुँच पाए और भीड़ बड़ी हो! लेकिन पूरे राज्य में कई मुसाफिर परेशान हो जाते
हैं बस न होने के कारण|
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